हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets) || HINDI VARNAMALA (2024)

हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets)

हिन्दी भाषा में, वर्णों को एक विशेष तरीके से व्यवस्थित समूह में शामिल किया जाता है, जिसे हिन्दी वर्णमाला (Hindi Varnamala) कहा जाता है। 1हिंदी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण शामिल होते हैं। हिन्दी व्याकरण के अनुसार, पहले स्वर वर्ण और उसके बाद व्यंजन वर्ण स्थित होते हैं।

अक्षर हिन्दी वर्ण (Hindi Varn)

हिन्दी वर्ण (Hindi Varn) अक्षर अंग्रेज़ी अनुवाद
अ (a) A
आ (aa) AA
इ (i) I
ई (ee) EE
उ (u) U
ऊ (oo) OO
ऋ (ri) RI
ए (e) E
ऐ (ai) AI
ओ (o) O
औ (au) AU
अं (an) अं AN
अः (ah) अः AH
क (k) K
ख (kh) KH
ग (g) G
घ (gh) GH
ङ (ng) NG
च (ch) CH
छ (chh) CHH
ज (j) J
झ (jh) JH
ञ (ny) NY
ट (ṭ)
ठ (ṭh) ṬH
ड (ḍ)
ढ (ḍh) ḌH
ण (ṇ)
त (t) T
थ (th) TH
द (d) D
ध (dh) DH
न (n) N
प (p) P
फ (ph) PH
ब (b) B
भ (bh) BH
म (m) M
य (y) Y
र (r) R
ल (l) L
व (v) V
श (sh) SH
ष (ṣh) ṢH
स (s) S
ह (h) H
क्ष (kṣh) क्ष KSH
त्र (tr) त्र TR
ज्ञ (gy) ज्ञ GY
श्र (shr) श्र SHR
ड़ (ḍ)
ढ़ (ḍh) ḌH

 

वर्ण क्या हैं? हिंदी भाषा में सबसे छोटी लिखित इकाई, जिसे वर्ण कहते हैं, वह है। इसे देवनागरी लिपि में भाषा की सबसे छोटी इकाई भी कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, ‘स्वर एवं व्यंजन के सम्मिलित रूप को ही वर्ण कहा जाता है।’

हिंदी वर्णमाला में वर्णों या अक्षरों की संख्या

हिन्दी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में कुल 52 वर्ण होते हैं, जिनमें 11 स्वर, 2 आयोगवाह (अं, अः), 33 व्यंजन (क् से ह् तक), 2 उत्क्षिप्त व्यंजन (ड़, ढ़), और 4 संयुक्त व्यंजन (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) शामिल हैं। हिंदी वर्णमाला में पहले स्वर वर्ण और उसके बाद व्यंजन वर्ण की व्यवस्था होती है। वर्णों की संख्या भिन्न-भिन्न प्रकारों से गणना की जा सकती है:

हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets) || HINDI VARNAMALA
हिंदी वर्णमाला (Hindi Alphabets)
  1. मूल या मुख्य वर्ण – 44: इसमें 11 स्वर, 33 व्यंजन शामिल हैं, अन्य वर्णों को छोड़कर।
  2. उच्चारण के आधार पर कुल वर्ण – 45: इसमें 10 स्वर, 35 व्यंजन हैं, कुछ विशेष वर्णों को छोड़कर।
  3. लेखन के आधार पर वर्ण – 52: इसमें 11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन शामिल हैं, सभी वर्णों को समाहित किया गया है।
  4. मानक वर्ण – 52: यह भी 11 स्वर, 2 आयोगवाह, 39 व्यंजन का समृद्धि है, जो स्वीकृति प्राप्त किए गए हैं।
  5. कुल वर्ण – 52: आखिरकार, सभी स्वर और व्यंजनों को मिलाकर कुल वर्ण की संख्या 52 होती है।

इस प्रकार, मूल या मुख्य वर्णों की संख्या चवालीस (44), उच्चारण के आधार पर वर्णों की संख्या पैंतालीस (45) तथा लेखन के आधार पर वर्णों की संख्या, मानक वर्णों की संख्या, और कुल वर्णों की संख्या वावन (52) है।

 

स्वर वर्ण

स्वर वर्ण होते हैं वे वर्ण जो बिना किसी रुकावट या अवरोध के स्वतंत्र रूप से उच्चारित किए जा सकते हैं और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक होते हैं। हिन्दी वर्णमाला में स्वरों की कुल 13 संख्या में शामिल हैं, जो हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः।

स्वरों का वर्गीकरण

1. मात्रा / कालमान / उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार

हिन्दी वर्णमाला में मात्रा, कालमान, या उच्चारण के आधार पर स्वर के तीन भेद होते हैं:

ह्रस्व स्वर (Hrasva Swar)

इन स्वरों का उच्चारण कम समय में होता है और मात्रा की अवधि छोटी होती है। उदाहरण स्वर हैं: अ, इ, उ, ऋ, ए, ओ।

दीर्घ स्वर (Deergh Swar)

इन स्वरों का उच्चारण अधिक समय में होता है और मात्रा की अवधि बड़ी होती है। उदाहरण स्वर हैं: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

 

प्लुत स्वर (Plut Swar)

इन स्वरों का उच्चारण और मात्रा की अवधि विशेष रूप से लंबा होता है। उदाहरण स्वर हैं: अं, अः।

मात्रा का अर्थ होता है ‘उच्चारण करने में लगने वाले समय’।

2. व्युत्पत्ति / स्रोत / बुनावट के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार

इनकी कुल संख्या 11 है। हिन्दी वर्णमाला में स्वरों को दो भागों में विभाजित किया जाता है: १. मूल स्वर, २. संधि स्वर। संधि स्वर को दो भागों में विभाजित किया जाता है: १. दीर्घ या सजातीय या सवर्ण या समान स्वर, २. संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर।

मूल स्वर (शांत स्वर या स्थिर स्वर)

मूल स्वर (शांत स्वर या स्थिर स्वर) वे स्वर हैं जिनकी उत्पत्ति के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। इन्हें शांत स्वर या स्थिर स्वर भी कहा जाता है। इनकी कुल संख्या 4 है – अ, इ, उ, ऋ।

संधि स्वर

इनकी कुल संख्या 7 हैं। संधि स्वर को दो भागों में विभाजित किया जाता है:

दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर

जब दो समान स्वर एक दूसरे से मिलते हैं, तो उन्हें दीर्घ सजातीय या सवर्ण या समान स्वर कहा जाता है। इसमें आ, ई, औ जैसे स्वर शामिल हैं, जो मिलकर एक नया स्वर बनाते हैं।

संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर

जब दो भिन्न स्वर या असमान स्वर एक दूसरे से मिलते हैं, तो उन्हें संयुक्त या विजातीय या असवर्ण या असमान स्वर कहा जाता है। इसमें ए, ऐ, ओ, औ जैसे स्वर शामिल हैं, जो मिलकर एक नया स्वर बनाते हैं।

इस प्रकार, इन संधि स्वरों की समृद्धि से कुल 7 स्वर बनते हैं, जो हिन्दी वर्णमाला में आमतौर पर संधि में पाए जाते हैं।

 

3. प्रयत्न के आधार पर स्वर के भेद या प्रकार

हिन्दी में, जीभ के स्पर्श से उच्चारित होने वाले स्वरों को तीन भागों में बाँटा जाता है: 1. अग्र स्वर, 2. मध्य स्वर, और 3. पश्च स्वर।

अग्र स्वर

वर्ण: इ, ई, ए, ऐ

अग्र स्वर वह स्वर हैं जिनके उच्चारण में जीभ का अग्र भाग काम करता है। इनमें छोटी इ और ई, और बड़ी ए और ऐ शामिल हैं।

मध्य स्वर

वर्ण: अ

मध्य स्वर वह स्वर है जिसमें जीभ का मध्य भाग काम करता है। इसमें केवल एक वर्ण होता है, जो है – अ।

पश्च स्वर

वर्ण: आ, उ, ऊ, ओ, औ

पश्च स्वर वह स्वर हैं जिनमें जीभ का पश्च भाग काम करता है। इसमें आ, उ, ऊ, ओ, औ वर्ण शामिल हैं, जो अधिकांश वाक्यों में हम सुनते हैं।

आगत स्वर

वर्ण: ऑ ( ॉ )

आगत स्वर अरबी-फारसी के प्रभाव से आए हैं और हिन्दी वर्णमाला में इसकी संख्या केवल एक है। इसका उच्चारण आ तथा ओ के बीच में होता है। शब्दों में इसका प्रयोग जैसे “डॉक्टर” और “डॉलर” में होता है।

व्यंजन वर्ण

हिन्दी वर्णमाला में वह वर्ण जो स्वरों की सहायता के बिना उच्चारण किए जा सकें, उन्हें व्यंजन कहा जाता है। इन व्यंजनों का पूरा उच्चारण करने के लिए स्वरों की मदद ली जाती है। हिन्दी वर्णमाला में कुल 39 व्यंजन हैं, जो कि क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह, क्ष, त्र, ज्ञ, ढ़, श्र से मिलते हैं।

शब्द “व्यंजन” शब्द का निर्माण विशेष रूप से होता है – “वि + अंजन” (यण संधि) से, जिसमें “वि” का अर्थ ‘सा’ होता है और “अंजन” का अर्थ ‘जुड़ना’ होता है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘साथ में जुड़ना’। इसलिए, जब कोई वर्ण स्वर की सहायता से उच्चारण किया जाता है, तो उसे “व्यंजन” कहा जाता है।

व्यंजन के भेद:

व्यंजन (Consonants) हिन्दी भाषा में वह वर्ण होते हैं जो किसी भी वाक्य में स्वरों के साथ मिलकर विभिन्न शब्दों को बनाने में सहायक होते हैं।

  1. स्पर्शीय व्यंजन या वर्गीय व्यंजन:
    • क वर्ग – क, ख, ग, घ, ड़ (उच्चारण स्थान – कंठ)
    • च वर्ग – च, छ, ज, झ, ञ (उच्चारण स्थान – तालू)
    • ट वर्ग – ट, ठ, ड, ढ, ण (उच्चारण स्थान – मूर्धा)
    • त वर्ग – त, थ, द, ध, न (उच्चारण स्थान – दन्त)
    • प वर्ग – प, फ, ब, भ, म (उच्चारण स्थान – ओष्ठय्)
  2. अन्तःस्थ व्यंजन:
    • य, र, ल, व
  3. अर्द्ध स्वर या संघर्षहीन:
    • य, व
  4. लुंठित/प्रकंपित व्यंजन:
    • र् (उच्चारण के समय श्वासवायु अनवरोधित रहती है)
  5. पार्श्विक व्यंजन:
    • ल (उच्चारण के समय जीभ के दोनों तरफ से वायु का निष्कासन होता है)

व्यंजन का महत्व

व्यंजन वर्ण हिन्दी भाषा में शब्दों का सही उच्चारण करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन्हें सही रूप से सीखकर हम शब्दों को सही ढंग से बोल सकते हैं और सही संदेश पहुँचा सकते हैं।

३. उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन

व्यंजन ऊष्मा या संघर्षी व्यंजन: इन वर्णों का उच्चारण अत्यधिक संघर्ष के साथ होता है और ज्यादातर ऊष्मा के साथ प्रयुक्त होता है। हिन्दी वर्णमाला में उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन वर्णों की संख्या ४ है।

उष्म व्यंजन या संघर्षी व्यंजन:

  1. श (श्र): शर्मा, शिक्षा
  2. ष: षड़ंग, षष्ठी
  3. स: सर्व, समय
  4. ह: हरित, हेम

काकल्य व्यंजन या काकलीय व्यंजन: हिन्दी की वर्णमाला में केवल ‘ह‘ व्यंजन काकल्य है। काकलीय व्यंजन या काकल्य व्यंजन (Glottal consonant) एक विशेष प्रकार का व्यंजन है जिसका उच्चारण मुख्य रूप से कण्ठद्वार के प्रयोग से होता है।

काकल्य व्यंजन:

  • ह (केवल): हल, हवा

इन व्यंजनों का उच्चारण संघर्षी और ऊष्मा के साथ होता है, जिससे इनका विशेष स्वरूप होता है।

 

व्यंजन वर्णों के अन्य रूप

द्विगुण व्यंजन / उत्क्षिप्त व्यंजन / ताड़नजात व्यंजन / फेका हुआ व्यंजन

जो व्यंजन वर्ण दो गुणों से मिलकर बना हो, उसे द्विगुण व्यंजन कहते हैं। इन व्यंजनों को जीव्हा के स्पर्श से मुँह से बाहर तेजी से फेंक देने की क्रिया के कारण इन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन या ताड़नजात व्यंजन भी कहा जाता है। इसका प्रयोग विशेषतः उच्च स्तर के उदात्त भाषा में होता है, जहां शब्दों को और भी उदारता से बोलने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। यह व्यंजन वर्ण की विशेषता है क्योंकि इसे उच्चारित करते समय जीव्हा को बाहर की दिशा में तेजी से फेंकना पड़ता है, जिससे शब्द की ऊचाई और विशेषता बढ़ती है। इसलिए, इसे फेका हुआ व्यंजन भी कहते हैं।

हिन्दी की वर्णमाला में इनकी केवल और केवल कुल संख्या 2 है – ड़, ढ़।

इनका विशेषता: इन दो वर्णों का विशेषता यह है कि इन्हें कभी भी शब्दों के आरंभ में नहीं आते हैं। इनकी कुल संख्या हिन्दी वर्णमाला में 2 है और ये हमेशा किसी शब्द के बीच या उसके अंत में आते हैं।

उदाहरण:

  1. पढ़ना – इन वर्णों का उपयोग शब्द के अंत में होता है, जैसे “पढ़ना”।
  2. लड़ना – “लड़ना” में भी इन्हें शब्द के बीच में देखा जा सकता है।
  3. घड़ा – “घड़ा” शब्द में इन वर्णों का उपयोग होता है।
  4. चढ़ाना – “चढ़ाना” में भी इन्हें शब्द के बीच में पाया जाता है।

नुक्ता का प्रयोग: यदि इन वर्णों को किसी शब्द में आधे वर्णों के साथ जोड़ा जाए, तो उसमें नुक्ता का प्रयोग नहीं किया जाता है। उदाहरण के लिए, “मंडल” या “मण्डल” और “पंडित” या “पण्डित”। इसी प्रकार, द्विगुण व्यंजन का प्रयोग भी अंग्रेजी शब्दों के साथ नहीं होता है, जैसे “रोड़” और “रीड़”।

नुक़्ता

नुक़्ता वह बिंदु है जो ड़, ढ़, के नीचे आकर लगाया जाता है। इसका अर्थ है आधा “न्”। इसका प्रयोग शब्दों को जोड़ने और उन्हें बनाए रखने के लिए किया जाता है। यह व्यंजन वर्णों को मजबूती और स्थिरता प्रदान करता है।

नुक़्ता के प्रकार:

  1. आगत व्यंजन:
    • आगत व्यंजन उन व्यंजन वर्णों को कहते हैं जो अंग्रेजी और उर्दू से हिन्दी में आए हुए हैं और उनमें नुक़्ता का प्रयोग होता है। इनमें क़, ख़, ग़, ज़, फ़ शामिल हैं।
  2. द्वित्व व्यंजन:
    • जब किसी शब्द में एक ही व्यंजन दो बार आते हैं, और पहला आधा होता है तथा दूसरा आधे से ज्यादा होता है, तो उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं। इसमें तीन अक्षरों से अधिक वर्ण होते हैं। जैसे – पत्ता, बच्चा, रसगुल्ला, इत्यादि।

नुक़्ता का महत्व: नुक़्ता व्यंजन हिन्दी भाषा में वर्णों को जोड़कर उच्चारण को सुधारने में मदद करता है। यह शब्दों को स्थिरता और मजबूती प्रदान करता है, और भाषा की सही बोली जाने को सुनिश्चित करता है।

 

आयोगवाह

अनुस्वार (ं)

अनुस्वार स्वर के बाद हमेशा आता है। इसे व्यंजन वर्ण के बाद या उसके साथ कभी नहीं लिखा जाता, क्योंकि व्यंजन वर्णों में पहले से ही स्वर वर्ण शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए – “कंगा”, “रंगून”, “तंदूर”। इसमें ऊपर लगी हुई बिंदु का अर्थ आधा “न्” होता है। अनुस्वार की संख्या 1 है – “अं”।

विसर्ग (ः)

विसर्ग स्वर के बाद हमेशा आता है और इसका उच्चारण करते समय “ह / हकार” की ध्वनि आती है। विसर्ग का प्रयोग सभी शब्दों में संस्कृत (तत्सम) अर्थात तत्सम शब्दों में होता है, जैसे कि “स्वतः”, “अतः”, “प्रातः”, “दुःख”। विसर्ग की संख्या भी एक है – “अः”।

आयोगवाह हमेशा साथ चलने में सहयोगी होता है, क्योंकि यह स्वयं में अयोग्य है और केवल स्वर या व्यंजन के बाद ही प्रयुक्त होता है।

 

अनुनासिक

हिन्दी वर्णमाला में अनुनासिक वर्ण दो प्रकार के होते हैं –

चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ ) : चंद्रबिन्दु के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इसे अंग्रेजी के स्वर चिन्ह के रूप में प्रयोग किया जाता है और इसके प्रयोग के नियम निम्नलिखित हैं –

    • जब अंग्रेजी वर्ण “O” के पहले और बाद में कोई अन्य अंग्रेजी वर्ण आवश्यक हो, परन्तु “O” कभी नहीं हो; तब अधिकतर चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ ) का प्रयोग किया जाता है।
    • उदाहरण के लिए – “डॉक्टर”, “हॉट”, “बॉल”, “कॉफी”, “कॉपी” आदि।

 

चन्द्रबिन्दु ( ाँ ) : चन्द्रबिन्दु के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इसे विशेष उच्चारण वाले स्थानों में प्रयोग किया जाता है, जैसे शिरोरेखा के ऊपर।

    • जब उच्चारण शुद्ध नासिक हो, वहाँ पर चन्द्रबिन्दु का प्रयोग किया जाता है, जैसे “वहाँ”, “जहाँ”, “हाँ”, “काइयाँ”, “इन्साँ”, “साँप”, आदि।
    • चन्द्रबिन्दु के स्थान पर बिंदु का प्रयोग भी किया जा सकता है, जैसे “भाइयों”, “कहीं”, “मैं”, “में”, “नहीं”, “भौं-भौं” आदि।
    • इस नियम के अनुसार कहीं, “केँचुआ”, “सैँकड़ा”, आदि शब्द ग़लत हैं।

 

Frequently Asked Questions (FAQ)

हिन्दी वर्णमाला के 52 अक्षर कौन कौन से हैं?

हिन्दी वर्णमाला में कुल 52 अक्षर होते हैं, जिनमें से 13 स्वर और 39 व्यंजन शामिल हैं। ये अक्षर हैं: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ; ढ़, श्र।

संख्या स्वर
1
2
3
4
5
6
7
8
9
10
11
12 अं
13 अः

वर्णमाला (Alphabets) किसे कहते हैं और हिन्दी में कितने होते हैं?

वर्णों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। मानक हिंदी वर्णमाला में 52 वर्ण होते हैं, जिनमें 13 स्वर और 39 व्यंजन शामिल हैं।

अ से ज्ञ तक में कितने अक्षर होते हैं?

अ से ज्ञ में कुल 52 अक्षर होते हैं, जिनमें से 13 स्वर और 39 व्यंजन हैं। मूल या मुख्य अक्षर 44 होते हैं।

हिन्दी वर्णमाला का पहला वर्ण कौन सा है?

हिन्दी वर्णमाला का पहला वर्ण “अ” है।

हिंदी में मूल स्वर कितने होते हैं?

हिन्दी वर्णमाला में मूल स्वर 11 होते हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।

हिन्दी वर्णमाला के जनक कौन है?

हिन्दी वर्णमाला की जन्मदात्री संस्कृत में है, और ‘शिव पुराण’ में इसका उल्लेख है।

हिन्दी वर्णमाला में कुल कितने वर्ण होते हैं?

हिन्दी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण होते हैं, जिनमें से 13 स्वर और 39 व्यंजन हैं।

लेखन के आधार पर हिन्दी वर्णमाला में वर्ण कितने हैं?

लेखन के आधार पर हिन्दी वर्णमाला में कुल 52 वर्ण होते हैं, जिनमें 13 स्वर और 39 व्यंजन हैं।

हिन्दी वर्णमाला में मानक वर्ण की संख्या कितनी है?

हिन्दी वर्णमाला में मानक वर्णों की संख्या 52 है, जिनमें 13 स्वर और 39 व्यंजन हैं।

हिन्दी वर्णमाला में मूल वर्ण कितने होते हैं?

हिन्दी वर्णमाला में मूल वर्णों की संख्या 44 है, जिनमें 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं, “अं, अः, ड़, ढ़, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।

हिन्दी वर्णमाला में उच्चारण के आधार पर कुल वर्ण हैं?

उच्चारण के आधार पर हिन्दी वर्णमाला में कुल 45 वर्ण हैं, जिनमें 10 स्वर और 35 व्यंजन हैं, “ऋ, अं, अः, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र” को छोड़कर।

Content Source : Google Book 

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